ऐसी ही एक अन्य महत्वपूर्ण घटना बताती है
कि भगवान श्री कृष्ण ने श्री अक्रूर जी महाराज को
ही महाराज धृतराष्ट्र के पास भेजा ताकि उनको
समझाया जा सके की युद्ध के परिणाम बहुत ही घातक
होते है और इसकारण युद्ध करने का विचार बदल
दें।
यह दोनों घटनाये, महाराज जी की महिमा को
उजागर करती है और यह सिद्ध करती है कि महाराज जी
कोई साधारण पुरूष नही थे बल्कि कोई देवता का रूप
थे।
वृष्णि वंश में उत्पन्न हुये श्री अक्रूर
जी महाराज के वँशजों ने जब व्यापार को अपनाया तो
उसका प्रभाव सभी समाजों पर पड़ना निश्चित था।
कालान्तर में इस समाज को ‘‘बारहसैनी’’ का नाम दिया
गया। इस कुल की शक्ति एवं कार्यक्षमता किसी भी
सेना की शक्ति से अधिक मांपी गयी और इसीकारण कलयुग
के प्रथम चरण में इस समाज को ‘‘वार्ष्णेय’’ शब्द
से भी बोधित किया जाने लगा। ‘‘वार्ष्णेय’’ शब्द कई
स्थानों पर भगवान श्री कृष्ण जी एवं हमारा
बारहसैनी समाज वृष्णि वंश
श्री अक्रूर जी महाराज की महिमा का जितना
गुणगान किया जाये उतना ही कम है। भगवान श्री कृष्ण
की नगरी द्वारका पर जब अकालरूपी संकट छाया तो
प्रभु ने फिर श्री अक्रूर जी को ही याद किया। उनके
पदार्पण करते ही, वर्षा होने लगी और अकाल दूर हो
गया। इसी प्रकार के कई उदाहरणों से ग्रन्थ भरे
हुये है। आज वार्ष्णेय समाज के प्रत्येक व्यक्ति
को गर्व होना चाहिये कि हम श्री अक्रूरजी के वंशज
है और अक्रूर जी महाराज उसके इष्ट देव
है।
श्री अक्रूर जी महाराज की जय।
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